नमस्कार दोंस्तो, आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं की जिसे पढ़कर आप तथा आपके बच्चे बहुत हीं प्रेरित हो जायेंगे. जी, यह कहानी हैं की कुछ ऐसी. इस कहानी का शीर्षक है “राजू की साइकिल“. यह बच्चों के लिए प्रेरणादायक कहानी, यह एक सिख देने वाली कहानी है. हम वादा करते हैं यह स्टोरी आपको बिलकुल पसंद आएगी.
स्टोरी किस बारे में है?: यह कहानी को पूरा पढ़ने से पहले हम आपको इस कहानी की थोड़ी जानकारी उपलब्ध करा देते हैं. आपको बता देते हीं की आखिरकार यह कहानी किस विषय पर है. जी हाँ, यह एक प्रेरणादायक स्टोरी हैं, इस कहानी में एक छोटा बच्चा (राजू) होता है जो फालतू की चीजों में अपने पैसे कर्च करता है, लेकिन जब उसे कुछ खरीदने की बारी आती है तो वो उसे खरीद नहीं पाता है. तब उसकी माँ उसे एक सिख देती है एवं उसके बात वो लड़का उस सिख को अपने जीवन में उतार लेता है. उसकी माँ उसे क्या सिख देती है, पढ़ते हैं इस कहानी में.
राजू की साइकिल (बच्चों के लिए प्रेरणादायक कहानी)
एक गांव में राजू नाम का एक छोटा बच्चा रहता था. उसके माता पिता बहुत हीं गरीव थे. वे दूसरों के खेतों में मजदूरी करते थे. जो कुछ भी उन्हें मजदूरी में मिलता था उसे वो अपने घर लाकर अपने बच्चों के साथ मिल बांटकर खाते थे. उन्हें पैसे की बहुत हीं दिक्कत होती थी, क्योंकि उनके पास कोई भी खेत नहीं था. वो हमेशा दूसरों के खेतों में हीं काम करते थे.
उसके पिता जब भी कुछ पैसे कम कर घर पर लाते थे तो राजू हमेशा उनसे कुछ पैसे जिद करके ले लेता था एवं पड़ोस के दुकान से जाकर कभी बिस्किट कभी चॉकलेट कभी कुछ कुछ और खरीद कर वह खाता रहता था और जो भी पैसे उसके पिता देते थे वह अक्सर उसे खर्च कर देता था। उसके पिता के पास पैसे बहुत ही कम होते थे फिर भी राजू अपने पिता से जिद करके अक्सर पैसे ले लिया करता था। राजू की मां भी उससे बहुत समझाती थी लेकिन फिर भी वह नहीं मानता।
एक दिन राजू की मां कुछ काम से बाजार आए थे उसके साथ राजू भी आया था। राजू अक्सर अपने मां के साथ बाजार आ जाया करता था। उसे घूमना फिरना और मजे करना बहुत अच्छा लगता था। जब भी उसकी मां बाजार आती थी वह जिद करके अपनी मां के साथ बाजार आ जाता था। बाजार में उसे तरह-तरह की खाने की चीजें मिलती थी और अपनी मां से वह जीत करके उसे खरीद लेता था और वो खाता था और खूब मजे करता था।
उस दिन जब राजू अपने मां के साथ बाजार गया तो उससे एक नई सी साइकिल दिखाई दी। राजू को बहुत ही मन करता था कि वह साइकिल चलाएं लेकिन उसके पास साइकिल नहीं थी। राजू ने जैसे ही उस साइकिल को देखा उसने अपनी मां से साइकिल खरीदने की जिद करने लगा। उसके मां के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वह साइकिल खरीद सके क्योंकि वह साइकिल थोड़ी महंगी थी। राजू की मां ने उसे समझाया “बेटे मेरे पास इतने पैसे नहीं है कि मैं तुझे साइकिल खरीद के दे सकूं”। ऐसा सुनकर राजू रोने लगा और साइकिल खरीदने की जिद करने लगा।
बहुत समझाने के बाद जब राजू नहीं समझा, तब उसकी मां ने उसे बोला “ठीक है मैं साइकिल खरीद दूंगी लेकिन तुम्हें मेरी बात माननी पड़ेगी“। राजू बोला “मैं आपकी सारी बातें मानूंगा बस मुझे यह साइकिल खरीद दो“। राजू की मां बोली “इसे मैं नहीं खरीदूंगी तुम खुद ही इसे अपने पैसे से खरीदोगे“। “मैं इसे कैसे खरीद सकता हूं” राजू बोला। राजू की मां बोली “अगर तुम मेरी बात मानोगे तो तुम यह साइकिल कुछ दिनों में खरीद सकते हो“। राजू बोला “वह कैसे?”।
राजू को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां उसे क्या बोल रही है वह साइकिल को अपने पैसे से कैसे खरीद पाएगा क्योंकि उसके पास तो पैसे ही नहीं। यही सोचते-सोचते राजू बाजार से अपनी मां के साथ घर आ गया। घर आते ही राजू ने अपनी मां से पूछा “मां मुझे बताओ ना मैं साइकिल कैसे खरीद सकता हूं“। राजू की मां बोली “ठीक है मैं बताती हूं तुम इसे कैसे खरीद सकते हो, उसके लिए तुम अपनी कॉपी और कलम लेकर आओ”। राजू जल्दी से ही अपनी कॉपी और कलम लेकर अपनी मां के पास आ गया।
राजू की मां ने राजू से पूछा “अच्छा बताओ, तुम अपने पिताजी से हर रोज जिद कर के कितने पैसे ले लेते हो“। राजू ने बोला “ये कैसा सवाल है“। राजू की मां ने बोली “अगर तुम्हें साइकिल खरीदनी है तो इसका जवाब तुम्हें देना पड़ेगा“। राजू याद करने लगा कि वह पिताजी से हर रोज कितने पैसे ले लेता है। कुछ देर सोचने के बाद उसने अपनी मां से बताया “मैं हर रोज पिताजी से कभी ₹30 तो कभी ₹40 जिद कर कर ले लेता हूं“। उसकी मां बोली “यह सारे पैसे तुम क्या करते हो“। “क्या करूंगा मैं इसे खर्च कर देता हूं, कभी मैं चॉकलेट खरीदता हूं कभी मैं बिस्किट खरीदता हूं कभी कोई भी टॉफी खरीद लेता हूं, बस इस तरह मैं इन पैसों को खर्च कर देता हूं” राजू ने मासूमियत भरे अंदाज में बोला।
राजू की मां बोली “तुम जितने पैसे एक दिन में खर्च करते हो इस कॉपी पर लिखो“। राजू ने अपने कॉपी पर ₹40 लिख दिया। अब राजू की मां ने राज्य से पूछा “यदि तुम एक दिन में ₹40 खर्च करते हो तो एक महीने में तुम्हारे कितने पैसे खर्च होते हैं“। कुछ देर सोचने के बाद राजू ने बोला “12 सौ रुपए“। राजू की मां बोली “इसे भी अपनी कॉपी पर लिखो“. राजू ने इसे भी कॉपी पर लिख दिया. फिर राजू की मां बोली “अब यह बताओ कि तुम यदि 1 महीने में 1200 रुपए खर्च करते हो तो 1 वर्ष में तुम्हारे कितने रुपए खर्च हो जाते हैं“. राजू कुछ देर तक अपनी कॉपी पर जोड़ता रहा और फिर उसने बताया “14,400 रुपए“।
राजू के पैरों तले जमीन खिसक गई उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह साल भर में 14,400 रुपए खर्च कर देता है। कुछ देर तक वह शॉक हो गया। राजू की मां ने राजू से कहा “तुम्हें पता चला की तुम 1 वर्ष में कितने पैसे खर्च कर देते हो, जिस साइकिल को तुम खरीदना चाहते हो उसकी कीमत केवल ₹6000 की है और तुम 1 वर्ष में ₹14000 खर्च कर देते हो, यदि तुम इस फालतू के खर्चे को रोक देते हो तो केवल 5 महीने के भीतर तुम इस साइकिल को खरीद सकते हो, वह भी तुम अपने पैसे से“। यह सुनकर राजू बहुत खुश हो गया, उसे सब कुछ समझ में आ गया, उसने आज से ही फैसला कर लिया कि वह फालतू का खर्च नहीं करेगा और उसे उसके पिताजी जो भी पैसे देंगे उसे अपने गुल्लक में जमा करेगा।
राजू हर रोज अपने पिताजी से पैसे मांगता लेकिन वह फालतू की चीजों में खर्च नहीं करता था, वह आपने गुल्लक में जमा करता था, कुछ ही दिनों बाद उसके गुल्लक भर गए। जब उसने अपनी गुल्लक तोड़ी, तो उसमें लगभग ₹8000 जमा हो चुके थे। वह बहुत ही खुश हुआ उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने ₹8000 जमा कर लिए हैं।
राजू अपनी मां के साथ वह सारे पैसे लेकर बाजार गया और वहां से 6000 रुपए में वह अपनी साइकिल खरीदी। बाकी बचे 2000 रुपए उसने अपनी मां को दे दिया। खुशी खुशी दोनों घर चले आए।
राजू की साइकिल एक Inspirational Story है, इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि यदि हम थोड़े-थोड़े पैसे हर रोज अगर जमा करते हैं तो हमारे पास कुछ ही दिनों में बहुत सारे पैसे हो जाते हैं जैसा की एक कहावत है “बूंद बूंद से घड़ा भरता है”।
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